कहानी: “अधूरी नींद, पूरा सपना”



मुख्य पात्र:

अमन – एक छोटे शहर का साधारण छात्र
मां – मेहनती और सपनों को समझने वाली
पापा – फैक्ट्री में काम करने वाले, सख्त लेकिन दिल के अच्छे


कहानी शुरू होती है...

अमन का सपना था – IAS अफसर बनना

छोटे शहर की तंग गलियों और बिजली की कटौती के बीच उसका सपना बहुत बड़ा था। उसके पास न तो महंगे कोचिंग क्लासेज़ का सहारा था, और न ही स्मार्टफोन या इंटरनेट। लेकिन उसके पास था – इच्छाशक्ति, जो हर हाल में हार मानने से इनकार करती थी।

हर सुबह 4 बजे उठकर वह पढ़ाई करता, दिन में स्कूल, और फिर रात को माँ के पास बैठकर मिट्टी के चूल्हे की रोशनी में दोबारा किताबें खोलता। उसकी मां अक्सर कहती,

"बेटा, नींद अभी पूरी न हो, तो कोई बात नहीं। सपना पूरा हो जाए, बस यही काफी है।"

अमन ने सबका मज़ाक झेला – “इतना पढ़कर क्या करेगा?”, “तेरे जैसे हजारों हैं जो यूपीएससी की तैयारी करते हैं…” – लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी।

एक दिन उसके पिता ने गुस्से में कहा – “खाली पढ़ाई से पेट नहीं भरता! फैक्ट्री में आकर काम सीखो।”

अमन ने मुस्कुरा कर जवाब दिया –
"अगर आज फैक्ट्री में गया, तो कल फैक्ट्री का मालिक नहीं बन पाऊँगा, बाबूजी।"

उसने खुद को दुनिया से काट लिया – सिर्फ किताबें, सवाल, नक्शे, संविधान और मेहनत।

पहला अटेम्प्ट – असफल
दूसरा अटेम्प्ट – इंटरव्यू तक पहुँचा, लेकिन रिजेक्ट
तीसरा अटेम्प्ट – वो सेलेक्ट हो गया, और 43वीं रैंक के साथ IAS बन गया!

गाँव लौटा तो जिन लोगों ने उसे ‘फालतू सपना देखने वाला लड़का’ कहा था, वही अब उसकी मिसाल दे रहे थे।


सीख (Moral):

सपनों को सच करना है तो हालात नहीं, खुद को बदलो।
अधूरी नींद मंजूर है, लेकिन अधूरा सपना नहीं।
मेहनत देर से जवाब देती है, लेकिन देती जरूर है।



 

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