Rajasthan me aajadi ke baad ka swarnim bharat ki kitab ko kyu hataya gya ।। राजस्थान में आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत की किताब को क्यों हटाया गया ।। जाने पूरी जानकारी हिंदी में

 



🧾 किताबें क्यों हटाई गईं?

राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के अनुसार, किताबों में कुछ सामग्री “एक परिवार विशेष” (गांधी परिवार) पर अत्यधिक केंद्रित थी, जबकि भारत के अन्य महान नेताओं जैसे लाल बहादुर शास्त्री, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. भीमराव अंबेडकर और अन्य राष्ट्रनिर्माताओं को उपेक्षित किया गया था।

उनका कहना था कि:

"इतिहास को केवल एक राजनीतिक वंश की महिमा गान नहीं बनाना चाहिए, बल्कि सभी महान नेताओं को उचित स्थान मिलना चाहिए।"


📖 किताबों में क्या था?

"आजादी के बाद का भारत" पुस्तक में प्रमुख रूप से यह विषय शामिल थे:

  • स्वतंत्रता के बाद की शासन व्यवस्था

  • नेहरू युग की आर्थिक नीतियाँ

  • आपातकाल (1975) और उसका प्रभाव

  • पंचवर्षीय योजनाएँ

  • ग्रीन रेवोल्यूशन और अंतर्राष्ट्रीय संबंध

  • यूपीए-एनडीए कालखंडों की तुलना

हालांकि विषय वस्तु का उद्देश्य भारतीय लोकतंत्र के विकास को दर्शाना था, परंतु राज्य सरकार का आरोप है कि यह लेखन 'झुकावयुक्त' था, और उसमें ऐतिहासिक घटनाओं की एकतरफा व्याख्या की गई।


🧠 वैकल्पिक विचार

राज्य सरकार ने कहा है कि इस विषय पर एक समीक्षा समिति गठित की जाएगी, जो पाठ्यपुस्तकों की नवीन लेखन या संशोधन के सुझाव देगी। लक्ष्य है कि अगला संस्करण सभी पक्षों को संतुलित रूप से प्रस्तुत करे।

शिक्षाविदों का कहना है कि यदि सुधार वैचारिक विविधता के लिए हो रहा है, तो यह स्वागतयोग्य है। लेकिन यदि यह केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित है, तो यह शिक्षा की निष्पक्षता के लिए हानिकारक हो सकता है।


🎤 विरोध और समर्थन

  • विरोध:
    कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस कदम को "इतिहास से छेड़छाड़" करार दिया है। उनका आरोप है कि यह सरकार "गैर-जरूरी राजनीतिक बदले की भावना से" प्रेरित होकर शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रही है।

  • समर्थन:
    वहीं कई शिक्षाविद और अभिभावकों ने इसे सकारात्मक पहल बताया है, यह कहते हुए कि बच्चों को संतुलित और व्यापक परिप्रेक्ष्य में इतिहास सिखाना आवश्यक है।


📌 निष्कर्ष

"आजादी के बाद का भारत" जैसी पुस्तकों का पाठ्यक्रम से हटाया जाना केवल एक शैक्षणिक परिवर्तन नहीं है—यह उस बड़ी बहस का हिस्सा है जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक संतुलन, ऐतिहासिक सत्य और राजनीतिक दखल को लेकर समय-समय पर उठती रही है।

जब तक यह बदलाव छात्रों के व्यापक और निष्पक्ष ज्ञान के लिए हो, तब तक यह स्वागत योग्य है। लेकिन यह आवश्यक है कि शिक्षा राजनीतिक रंग से दूर रहकर, तथ्यों पर आधारित और समावेशी दृष्टिकोण को अपनाए।


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भूमिका

शिक्षा केवल ज्ञान नहीं देती, बल्कि समाज के विचार और मूल्य भी गढ़ती है। इसी संदर्भ में राजस्थान सरकार द्वारा कक्षा 11वीं और 12वीं के विद्यार्थियों के लिए "आजादी के बाद का भारत" नामक सह-पाठ्य सामग्री को वापस लेने का निर्णय व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। यह कदम न केवल शिक्षाविदों बल्कि राजनीतिक हलकों में भी ध्यान का केंद्र बन गया है। आइए इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।


पुस्तक की पृष्ठभूमि

"आजादी के बाद का भारत" नामक यह पुस्तक वर्ष 2022–23 में तत्कालीन सरकार द्वारा कक्षा 11वीं–12वीं के छात्रों के लिए वैकल्पिक अध्ययन सामग्री के रूप में जारी की गई थी। इसका उद्देश्य स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा, लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती, वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक सुधारों, और सामाजिक आंदोलनों जैसे विषयों पर विद्यार्थियों को परिचित कराना था।


वापसी का कारण

राजस्थान की वर्तमान भाजपा सरकार ने जुलाई 2025 में इस पुस्तक को वापिस लेने का निर्णय लिया। इसके पीछे निम्नलिखित कारण बताए गए:


एकतरफा प्रस्तुतीकरण:

शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने आरोप लगाया कि पुस्तक में केवल गांधी परिवार (पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि) के योगदान को अत्यधिक प्रमुखता दी गई है, जबकि अन्य राष्ट्रनिर्माताओं जैसे सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका को या तो नजरअंदाज किया गया या बहुत सीमित स्थान दिया गया।


राजनीतिक झुकाव:

सरकार का मानना है कि यह सामग्री राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित है और छात्रों में एकपक्षीय ऐतिहासिक समझ को जन्म दे सकती है, जो शिक्षा के मूल उद्देश्य के विरुद्ध है।


पाठ्यक्रम की समीक्षा नहीं हुई:

यह पुस्तक बिना किसी समुचित शिक्षाविद समीक्षा समिति या NCERT की मान्यता के प्रकाशित की गई थी। वर्तमान सरकार का मत है कि इस तरह की सामग्री केवल विशेषज्ञों की स्वीकृति के बाद ही वितरित होनी चाहिए।


सरकार की अगली योजना

राज्य सरकार ने इस पुस्तक की सभी प्रतियाँ स्कूलों से हटाने का आदेश जारी किया है।


एक नई विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास पर संतुलित, तथ्यों पर आधारित और समावेशी दृष्टिकोण वाली नई सह-पाठ्य सामग्री तैयार करेगी।


साथ ही, प्रस्तावित पाठ्यक्रम में क्षेत्रीय नायकों और आधुनिक वैज्ञानिकों को भी समुचित स्थान देने की बात कही गई है।


विरोध और समर्थन

समर्थन:

भाजपा व उससे जुड़े शैक्षणिक संगठन इस निर्णय को शैक्षणिक संतुलन की दिशा में उठाया गया सही कदम मानते हैं।


विरोध:

कांग्रेस पार्टी और कई शिक्षाविदों ने इस कदम की आलोचना की है। उनका कहना है कि यह राजनीतिक हस्तक्षेप है और इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का प्रयास है।


निष्कर्ष

"आजादी के बाद का भारत" पुस्तक की वापसी केवल एक पाठ्यपुस्तक हटाने का मामला नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत में शिक्षा और इतिहास लेखन किस हद तक राजनीति से प्रभावित हो सकते हैं। यह आवश्यक है कि छात्रों को तथ्यात्मक, संतुलित और विचारोत्तेजक सामग्री पढ़ाई जाए, जिससे वे खुद निष्कर्ष निकाल सकें — न कि केवल किसी एक विचारधारा की दृष्टि से इतिहास समझें।


क्या आगे आने वाले पाठ्यक्रम छात्र हित को सर्वोपरि रखेंगे, या वे भी राजनीतिक तराजू पर तौले जाएंगे? यह प्रश्न शिक्षा नीति के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।


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